बिहार विधानसभा चुनाव 2025 राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण मुकाबला है। यह चुनाव न केवल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और INDIA ब्लॉक (महागठबंधन) के बीच सीधा संघर्ष है, बल्कि प्रशांत किशोर (पीके) के नेतृत्व में ‘जन सुराज’ जैसे तीसरे धड़े की उपस्थिति ने इसे चुनाव को त्रिकोणीय और अप्रत्याशित बना दिया है। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की मीम पार्टी भी बड़ा खेला करने के मुड मे लग रही है, बिहार के इस त्रिकोणीय चुनाव को चतुर्भुजी स्वरूप देने के लिए एक तीसरे मोर्चे का गठन किया है। सत्ताधारी एनडीए गठबंधन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जहां सत्ता बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन मजबूत वापसी की उम्मीद कर रहा है। चुनाव की तारीखें आ गई है, पहला फेज़ 6 और दूसरा 11 नवंबर 2025 को वोटिंग होगी, नतीजे 14 नवंबर को घोषित होंगे। इस बार का चुनाव जातिगत समीकरणों, युवा नेतृत्व, और गठबंधन की स्थिरता के मुद्दों पर लड़ा जा रहा है। बीजेपी चुनाव को हिंदू-मुस्लिम रंग देने की भरसक प्रयास कर रही है।
शुरुआती दौर का चुनावी माहौल
चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, और राज्य में कई हाई-प्रोफाइल अभियान चल रहे हैं, जिन्होंने माहौल को गर्मा दिया है:

राहुल गांधी: पदयात्रा और संयुक्त रैलियाँ
2024 आते-आते कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, जो महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) का हिस्सा हैं, लगातार रैलियों, पदयात्रों और जनसभाओं के माध्यम से मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शरू कर दिया। वो लगातार मुख्य रूप से केंद्र और राज्य की NDA सरकारों पर किसान, बेरोज़गारी, गरीबी और वोट चोरी की समस्याओं को लेकर निशाना साधने लगें।
राहुल गांधी की बिहार में ताबड़ तोड़ यात्राओं ने बाजार मे एक नई चर्चा शरू कर दी, जिसने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने काम किया। इसके अलावा, ‘महागठबंधन’ के नेताओं के साथ संयुक्त रैलियां कर विपक्षी दलों को एकजुट करने का सफल प्रयास किया व उन्हें मजबूत करने पर भी ध्यान दिया, ताकि केंद्र व राज्य में सत्तारूढ़ NDA के सामने एक मजबूत चुनौती पेश की जा सके।
जिसके परिणामस्वरूप तेजस्वी यादव ने एक कार्यक्रम में राहुल गांधी को महागठबन्धन की तरफ से प्रधानमंत्री का चेहरा बताया, और यह साफ कर दिया कि विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी अब पुरी तरह से महागठबंधन के नेता भी बन चुके हैं।
राहुल गांधी की बिहार में हुई पदयात्रा (जैसे कि ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा‘ का हिस्सा या ‘वोटर अधिकार यात्रा‘) का चुनावी प्रभाव कई आयामों में देखा जा सकता है, जिसका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी को मजबूत करना और महागठबंधन को एकजुट करना था।
यहाँ इसका विस्तृत विश्लेषण है:
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार और पार्टी का पुनरुद्धार:
लंबी पदयात्रा ने वर्षों से सुस्त पड़े कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं और कैडर में एक नया जोश भरा। इससे जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठन फिर से सक्रिय हुआ। राहुल गांधी जैसे राष्ट्रीय नेता का सीधे जनता के बीच आना कांग्रेस को बिहार के मुख्य राजनीतिक मुकाबले में वापस लाने का एक प्रयास था, जहाँ वह लंबे समय से क्षेत्रीय दलों की छाया में काम कर रही थी।
मुख्य राजनीतिक मुद्दे स्थापित करना:
राहुल गांधी ने अपनी यात्राओं में बार-बार जाति जनगणना का मुद्दा उठाया। उन्होंने तर्क दिया कि देश की आबादी में OBC, दलित और आदिवासियों की वास्तविक भागीदारी जानने के बाद ही उन्हें ‘न्याय’ मिल सकता है। यह बिहार की राजनीति का एक केंद्रीय विषय रहा है और महागठबंधन के कोर वोट बैंक (OBC और EBC) को साधने का एक बड़ा प्रयास था।
‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान, राहुल गांधी ने मतदाता सूची में गड़बड़ी (Special Intensive Revision – SIR) के कथित मुद्दे को उठाया और NDA पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया। यह एक आक्रामक चुनावी नैरेटिव था जिसका उद्देश्य चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर विपक्षी दलों के समर्थकों को एकजुट करना था। ‘चुनाव आयोग’ राहुल गांधी के किसी भी सवाल का सीधा जवाब नही दे पाया, मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुचा ।
युवाओं के बीच बेरोजगारी और आम जनता के बीच महंगाई को प्रमुखता से उठाकर उन्होंने केंद्र और राज्य (तत्कालीन NDA) दोनों सरकारों पर सीधा हमला किया, जो उन्हें युवाओं और गरीब तबकों से जोड़ने का प्रयास था।
महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) की एकता पर प्रभाव:
राहुल गांधी की यात्राओं में (विशेषकर ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में) तेजस्वी यादव और अन्य महागठबंधन नेताओं की भागीदारी ने जनता के बीच एक मजबूत विपक्षी एकता का संदेश दिया।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि राहुल गांधी की पदयात्रा से कांग्रेस को बिहार की राजनीति में एक प्रमुख सहयोगी के रूप में अधिक पहचान मिली, जिससे कुछ हद तक RJD की ‘ओवरशैडो’ होने की संभावना भी बनी। हालांकि, दोनों नेताओं की संयुक्त उपस्थिति ने गठबंधन की ताकत को दर्शाया।
क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को साधना:
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का रूट सीमांचल क्षेत्र से गुजरा, जहाँ अल्पसंख्यक मतदाताओं का प्रभाव अधिक है। यह कांग्रेस और महागठबंधन दोनों के लिए इस महत्वपूर्ण वोट बैंक को मजबूत करने का एक रणनीतिक प्रयास था। कुछ यात्राओं में उन्होंने मिथिला और चंपारण जैसे क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जहाँ ब्राह्मणों और अन्य सवर्ण जातियों की आबादी अधिक है, ताकि पारंपरिक रूप से भाजपा के माने जाने वाले इस वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके।
चुनावी माहौल पर कुल प्रभाव:
राहुल गांधी की पदयात्राओं में भारी भीड़ जुटी, जिसने मीडिया में व्यापक कवरेज हासिल किया और बिहार में चुनावी माहौल को गरमा दिया। इसने सत्ता पक्ष (NDA) को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया, जैसा कि बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है।
NDA नेताओं ने राहुल गांधी की यात्राओं को ‘दिशाहीन’ और ‘लक्ष्यहीन’ कहकर खारिज करने की कोशिश की, लेकिन साथ ही उन्होंने भी अपनी जनसंपर्क गतिविधियों को तेज कर दिया। इस यात्रा ने बिहार की राजनीति में ध्रुवीकरण को बढ़ाने का काम किया।
संक्षेप में, राहुल गांधी की बिहार पदयात्रा का तत्काल चुनावी प्रभाव भले ही सीटों में स्पष्ट रूप से दिखाई न दे, लेकिन इसने कांग्रेस के मनोबल को बढ़ाने, महागठबंधन को एक साझा मंच देने और जाति जनगणना, बेरोजगारी तथा ‘वोट चोरी‘ जैसे प्रमुख मुद्दों को बिहार की राजनीति के केंद्र में लाने का महत्वपूर्ण काम किया।
मोदी की कैंपेन और ‘जंगल राज’ पर हमला:
शुरुआती चुनावी माहौल में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई नेतृत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा-विकास का एजेंडा सबसे आगे है। मोदी एनडीए गठबंधन की सबसे बड़ी शक्ति हैं। एनडीए गठबंधन मुख्य रूप से दो प्रमुख बिंदुओं पर ज़ोर दें रहा है:

‘जंगल राज’ पर सीधा हमला:
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं ने विपक्ष (खासकर राष्ट्रीय जनता दल-RJD) के पिछले शासनकाल को ‘जंगल राज’ बताकर मतदाताओं को सचेत करने का प्रयास किया है। उनका लक्ष्य है कि वे युवाओं और पहली बार वोट करने वालों को पुराने दौर की अराजकता, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति की याद दिलाकर उन्हें महागठबंधन से दूर रखें। यह हमला खासकर नीतीश कुमार (जो वर्तमान गठबंधन के मुख्यमंत्री हैं) के सुशासन की छवि को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है, ताकि उनकी प्रशासनिक दक्षता और अनुभव को भुनाया जा सके।
केंद्र की योजनाओं और ‘डबल इंजन’ सरकार का लाभ:
मोदी ने केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं (जैसे आयुष्मान भारत, पीएम किसान सम्मान निधि, मुफ्त राशन) का ज़िक्र करते हुए बिहार में ‘डबल इंजन’ (केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार) के महत्व पर जोर दिया है। उनका तर्क है कि एक “डबल इंजन” सरकार ही बिहार के विकास को गति दे सकती है, जबकि विपक्ष राज्य के विकास में बाधा डालेगा।
महिलाओं को साधने का ‘ट्रंप कार्ड’:
एनडीए की रणनीति में महिलाओं को साधने पर विशेष जोर है, जो नीतीश कुमार के सुशासन की सबसे बड़ी समर्थक मानी जाती हैं।
आर्थिक सहायता योजना 10,000 रुपये का लाभ:
बिहार में महिलाओं को उच्च शिक्षा के बाद दी जा रही विशेष 10,000 रुपये की आर्थिक सहायता योजना (स्नातक पास करने पर) एनडीए का एक बड़ा ट्रंप कार्ड है। यह योजना युवाओं, खासकर महिला मतदाताओं के बीच सीधी आर्थिक सहायता पहुंचाकर, गठबंधन के प्रति जबरदस्त सद्भाव पैदा कर रही है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसी तरह की योजनाओं की सफलता को देखते हुए, एनडीए बिहार में महिला मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को साधने के लिए इस योजना को प्रमुखता से प्रचारित कर रहा है।
इसके अतिरिक्त, जीविका दीदी समूह और शराबबंदी जैसे सामाजिक सुधारों के माध्यम से नीतीश कुमार ने महिलाओं के बीच जो मजबूत वोट बैंक बनाया है, वह एनडीए की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है।
NDA की चुनौतियाँ और नकारात्मक पहलू
जहाँ एनडीए गठबंधन प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मा और नीतीश कुमार के सुशासन पर भरोसा कर रहा है, वहीं कुछ अंदरूनी और बाहरी चुनौतियाँ हैं जो महागठबंधन को फायदा पहुँचा सकती हैं।
आंतरिक तालमेल की कमी और सीटों का बँटवारा
बिखरा हुआ नेतृत्व:
एनडीए में हर बार की तरह इस बारभी कई क्षेत्रीय सहयोगी दल शामिल हैं— बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर), आरएलएम, और एचएएम। इतनी बड़ी संख्या में घटक दलों को एक मंच पर एकजुट रखना और उनके बीच सीटों का तालमेल (Seat Sharing) बिठाना एक बड़ी चुनौती होती है। चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं की अपनी महत्वकांक्षाएँ और माँग हैं, जिससे ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच सीटों को लेकर असंतोष पैदा किया, वक्त रहते समस्या का हल निकल आया। कुछ राजनीतिक जानकार का मानना है कि, बीजेपी के लिए एनडीए गठबंधन के गठक दलो को समझाने के और भी रास्ते है – जैसे ईडी, सीबीआई आदि।
सीट बंटवारे को लेकर नीतीश बाबू और जीतन राम मांझी दोनों गठबंधन में नाराज़ चल रहे थे, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया रिपोर्टों की मानें तो नीतीश कुमार को एक तरह से बीजेपी की तरफ से नजर बंद कर दिया गया है, उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है, पिछले चुनाव में छोटे भाई की भूमिका निभाने वाली बीजेपी इस चुनाव में जेडीयू के बराबर सीट पर चुनाव लड़ रही है, जिस बात को लेकर नीतीश बाबू खासा नाराज हैं। साथ ही साथ पिछला 2020 के विधानसभा चुनाव सुशासन बाबू के चेहरे पर लड़ा गया था, और इस बार एनडीए ने किसी को भी सीएम फेस नहीं बनाया, जिससे नीतीश बाबू की नाराजगी समझी सकती है।
चिराग पासवान की अपनी महत्वकांक्षाएँ
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान का पिछले चुनाव (2020) से ही नीतीश कुमार की कार्यशैली और नेतृत्व पर सीधा हमला रहा है। हालाँकि वह अब एनडीए का हिस्सा हैं और पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार के प्रति उनके मन में विश्वास का संकट अभी भी बरकरार है।
चिराग पासवान ने कई बार सार्वजनिक रूप से बिहार सरकार की कानून-व्यवस्था (अपराध के मामलों) पर सवाल उठाए हैं, जिससे बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हुई है। उनके इस ‘अंदरूनी हमले’ से विपक्ष को नीतीश सरकार को घेरने का मौका मिलता है।
दोनों नेताओं के बीच तनाव का एक और कारण सीटों का बँटवारा भी है। चिराग पासवान की पार्टी ने उन सीटों पर दावा किया है, जिन पर पिछली बार जेडीयू ने जीत दर्ज की थी या उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे (जैसे मटिहानी)। इस तरह की खींचतान एनडीए की एकजुटता पर सवाल खड़े करती है और ज़मीनी स्तर पर ‘फ्रेंडली फ़ाइट’ की आशंका को जन्म देती है, जिसका नुकसान गठबंधन को उठाना पड़ सकता है।
मांझी की नाराज़गी
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के संरक्षक जीतन राम मांझी की नाराज़गी का मुख्य कारण सीटों का बँटवारा है। उन्होंने अपनी पार्टी के लिए 15 सीटों की माँग की थी, जिसका लक्ष्य 6% वोट हासिल करके अपनी पार्टी को राज्य स्तरीय दल का दर्जा दिलाना था। उन्हें पिछली बार की 7 सीटों के मुक़ाबले इस बार केवल 6 सीटें मिली हैं (शुरुआती चर्चाओं में)। इतनी कम सीटें मिलने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है और “मन में दुख ज़रूर है”।
भले ही मांझी ने यह कहकर नाराजगी को कम करने की कोशिश की है कि “कम सीटें मिली हैं, लेकिन हम बिहार को जंगलराज में नहीं धकेल सकते”, उनकी यह निराशा दलित और महादलित समुदाय के बीच यह संदेश दे सकती है कि एनडीए गठबंधन में छोटे सहयोगियों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। इसका सीधा फायदा महागठबंधन के दलित एजेंडे को हो सकता है।
वोट ट्रांसफर की समस्या:
2020 के चुनाव में, नीतीश कुमार को लेकर भाजपा के कुछ समर्थक वोटरों के बीच नाराजगी थी, जिससे वोट ट्रांसफर प्रभावित हुआ था। इस बार भी, यदि जेडीयू और बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक एक-दूसरे के उम्मीदवारों को पूरी तरह स्वीकार नहीं करते हैं, तो यह सीधे तौर पर महागठबंधन को लाभ पहुँचाएगा।
‘एंटी-इनकम्बेंसी’ (सत्ता विरोधी लहर)
नीतीश कुमार की लंबी पारी:
नीतीश कुमार दो दशकों से अधिक समय तक बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं। इस लंबी अवधि के कारण उनके ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर का एक स्वाभाविक खतरा बना हुआ है। खासकर युवा वर्ग और उन मतदाताओं के बीच असंतोष अधिक है जो रोजगार और बेहतर जीवन स्तर की माँग कर रहे हैं।
असंतोष का प्रभाव:
यह एंटी-इनकम्बेंसी, चाहे कितनी भी कम हो, चुनाव को कांटे की टक्कर में बदल सकती है।
रोजगार और पलायन का मुद्दा
ग्राउंड रियलिटी:
भले ही एनडीए विकास की बात करे, लेकिन बिहार में रोजगार की कमी और बड़े पैमाने पर पलायन एक ऐसी सच्चाई है जिसे विपक्ष लगातार उठा रहा है। महागठबंधन ने युवाओं को लाखों नौकरियों का सीधा वादा किया है, जिसके सामने एनडीए की वर्तमान विकास योजनाएँ फीकी पड़ सकती हैं।
युवा मतदाताओं की बेचैनी:
युवा मतदाता, जो बड़ी संख्या में हैं, ‘जंगल राज’ की तुलना में अपने भविष्य (रोजगार) को लेकर अधिक चिंतित हैं। यदि महागठबंधन इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से भुनाता है, तो एनडीए का ‘जंगल राज’ का नैरेटिव कमज़ोर पड़ सकता है।
जातीय समीकरणों पर बढ़ता दबाव
आरक्षण और जातिगत जनगणना:
जातिगत जनगणना (जो बिहार में हो चुकी है) और बढ़े हुए आरक्षण के कारण, राज्य में जाति आधारित राजनीति फिर से तेज हो गई है। महागठबंधन, विशेषकर आरजेडी, अपने M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत कर रहा है और सामाजिक न्याय के नैरेटिव के साथ अन्य पिछड़े वर्गों को भी साधने की कोशिश कर रहा है।
उच्च जाति का असंतोष (BJP के लिए):
यदि एनडीए जातिगत समीकरणों को साधने के लिए कुशवाहा, मांझी, पासवान जैसे छोटे दलों को अधिक सीटें देता है, तो बीजेपी का पारंपरिक उच्च जाति का वोट बैंक खुद को उपेक्षित महसूस कर सकता है। इस समुदाय का एक छोटा सा हिस्सा भी अगर तीसरे मोर्चे की ओर खिसकता है, तो कई करीबी सीटों पर एनडीए को नुकसान हो सकता है।
NDA के प्रमुख घटक दल और नेताओं की भूमिका:
एनडीए गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) प्रमुख दल हैं, जिनके साथ लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान, राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के उपेंद्र कुशवाहा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के जीतन राम मांझी जैसे क्षेत्रीय नेता भी शामिल हैं। यह गठबंधन सामाजिक और जातीय समीकरणों को साधने की एक सोची-समझी रणनीति पर आधारित है:
नरेन्द्र मोदी (BJP):
राष्ट्रीय चेहरा, जो पूरे देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उनकी कैंपेन का फोकस राष्ट्रीय मुद्दों, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस और विकास के वादों पर है। उनका ‘जंगल राज’ पर हमला, खासकर अगड़ी जातियों और शहरी मतदाताओं को एकजुट करने का काम करता है।
नीतीश कुमार (JDU):
एनडीए का वर्तमान मुख्यमंत्री, उनकी कैंपेन मुख्य रूप से सुशासन, सामाजिक सुधारों (जैसे शराबबंदी) और महिलाओं के बीच उनके बनाए गए वोट बैंक (जीविका दीदी) पर केंद्रित है। मोदी के राष्ट्रव्यापी समर्थन के साथ, नीतीश की क्षेत्रीय पकड़ और प्रशासनिक अनुभव का तालमेल एनडीए की बड़ी ताकत है। लेकिन चुनाव के पहले से ही उनकी सेहत सही नहीं होने की बात कही जा रही है, ऐसे में देखना ये होगा कि नीतीश कुमार कितनी रैलियां इस चुनाव मे करते है।
चिराग पासवान (LJP-R):
युवा नेता जो रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी उपस्थिति से पासवान समुदाय के वोट एनडीए के पक्ष में मजबूती से जुड़ने की उम्मीद है। वे अपनी रैलियों में युवाओं को आकर्षित करने और ‘बिहार फर्स्ट’ का नारा देकर एक नए राजनीतिक एजेंडे को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
जीतन राम मांझी (HAM):
महादलित समुदाय के एक प्रमुख नेता, जो एनडीए के लिए अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) और दलित वोटों को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा (RLM):
कुशवाहा वोट बैंक (लव-कुश समीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा) पर उनका प्रभाव एनडीए की जातीय रणनीति को मजबूत करता है।
कुल मिलाकर, शुरुआती दौर के चुनावी माहौल में एनडीए अपनी कैंपेन को मोदी के विकासवाद और नीतीश के सुशासन की धुरी पर केंद्रित कर रहा है, जबकि ‘जंगल राज’ की याद दिलाकर विपक्ष की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल उठा रहा है। गठबंधन के सभी सहयोगी अपने-अपने जातीय और सामाजिक आधार को साधकर एनडीए के जनाधार को व्यापक बनाने की कोशिश में हैं।
जन सुराज की बिहार यात्रा (प्रशांत किशोर):
राजनीतिक रणनीतिकार से सक्रिय राजनेता बने प्रशांत किशोर ने अपनी लंबी ‘जन सुराज पदयात्रा’ के बाद चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। उनकी पार्टी जन सुराज ने बिहार की सभी $243$ सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिससे बिहार की राजनीति में दशकों बाद त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनी है।
जन सुराज के मुख्य सिद्धांत और संभावित लाभ (Benefits)
मूल मुद्दा: जन सुराज की कैंपेन का केंद्रबिंदु “जात-पात और हिंदू-मुस्लिम” की राजनीति से हटकर पलायन, रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत विकास के मुद्दों पर है। पीके का दावा है कि वह बिहार को देश के $10$ सबसे विकसित राज्यों में शामिल करना चाहते हैं।
नए विकल्प का आकर्षण: पीके मतदाताओं को यह बता रहे हैं कि $30-35$ साल से बिहार के पास नीतीश कुमार या लालू यादव के नेतृत्व वाले दो भ्रष्ट मोर्चों के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जन सुराज एक स्वच्छ और बेहतर विकल्प देने का दावा कर रहा है।
स्वच्छ छवि के उम्मीदवार: पीके ने पदयात्रा के दौरान ज़मीनी स्तर पर जुड़े, साफ छवि वाले और अलग-अलग जातियों के शिक्षित लोगों को टिकट दिए हैं। उनका उद्देश्य राजनीतिक अनुभव के बजाय सामाजिक सक्रियता को प्राथमिकता देना है।

जन सुराज की चुनौतियाँ और नुकसान (Losses)
संगठनात्मक कमज़ोरी: जन सुराज एक नई पार्टी है जिसका कोई संगठनात्मक ढाँचा (Organizational Structure) और इतिहास नहीं है। केवल प्रशांत किशोर के करिश्मे पर इतनी बड़ी संख्या में सीटें जीतना एक बड़ी चुनौती है।
“वोट कटवा” का ठप्पा: राजनीतिक विश्लेषक जन सुराज को वोट कटवा की भूमिका में देख रहे हैं। यदि जन सुराज बड़े स्तर पर सीटें जीतने में नाकाम रहा, तो उसे केवल स्थापित दलों के वोट काटने वाली पार्टी का ठप्पा लगेगा।
राजनीतिक हमलों का शिकार: एनडीए ने उन पर ‘सूरत कांड’ (दावा किया कि बीजेपी के दबाव में जन सुराज के कुछ उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिए) जैसे गंभीर आरोप लगाकर लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
एनडीए और महागठबंधन पर जन सुराज का असर
प्रशांत किशोर का दावा है कि वह दोनों प्रमुख गठबंधनों के भ्रष्ट और पुराने नेताओं के वोट काटेंगे, जिससे दोनों को नुकसान होगा।
| गठबंधन | प्रभाव (Effect) | कारण (Reason) |
| NDA | मध्यम वर्ग और उच्च जातियों पर प्रभाव | पीके की अपील मुख्य रूप से पढ़े-लिखे युवा, शहरी और असंतुष्ट उच्च जाति के मतदाताओं को आकर्षित करती है, जो बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं, लेकिन रोज़गार की कमी से नाराज़ हैं। नीतीश कुमार के सुशासन की विफलता को उजागर करने से भी NDA का वोट आधार कमज़ोर होता है। |
| महागठबंधन (INDIA Alliance) | सबसे बड़ा नुकसान (वोट कटने का) | पीके अपने भाषणों में ‘जंगल राज’ (लालू-राबड़ी युग) की वापसी का डर दिखाकर तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी पर सीधा निशाना साध रहे हैं। यह उनके पारंपरिक अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और गैर-यादव OBC वोटों को प्रभावित कर सकता है, जो अक्सर सत्ता विरोधी लहर में महागठबंधन की ओर झुकते हैं। |
सम्राट चौधरी (BJP) पर निशाना
प्रशांत किशोर ने भाजपा के प्रमुख नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर सीधे और तीखे व्यक्तिगत हमले किए हैं। उन्होंने चौधरी की शैक्षणिक योग्यता (डिग्री विवाद) और पुराने आपराधिक मामलों (जैसे नरसंहार के आरोपी होने के दावे) को सार्वजनिक रूप से उठाया है पीके का यह हमला दोहरी रणनीति का हिस्सा है:
यह दिखाना कि भाजपा भी दागी नेताओं को संरक्षण दे रही है, जबकि वह खुद को ‘जंगल राज’ के विपरीत साफ़-सुथरी राजनीति का प्रतीक बताती है। इस तरह के व्यक्तिगत और सनसनीखेज आरोप लगाकर वह मीडिया में जगह बनाते हैं और जन सुराज को चर्चा के केंद्र में रखते हैं, जिससे उनका एजेंडा अधिक मतदाताओं तक पहुंच सके।
संक्षेप में, जन सुराज बिहार चुनाव को द्विपक्षीय (Bipolar) से त्रिकोणीय (Triangular) बना रहा है। यदि जन सुराज 5-10% वोट भी हासिल करने में सफल होता है, तो वह कई करीबी सीटों पर NDA और महागठबंधन दोनों का समीकरण बिगाड़ सकता है, और सत्ता विरोधी वोटों का विभाजन कर सकता है।
AIMIM का महागठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश:
पूर्व राजद और जदयू नेता व कोचाधामन से विधायक “अख्तरुल ईमान” 2015 में एआईएमआईएम में शामिल हुए थे। उन्हें बिहार में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। अख्तरुल ईमान साहब है के नेतृत्व में 2015 में सीमांचल में थोड़े पैमाने पर मैदान आज़माया — 6 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली। 2020 के विधानसभा चुनाव मे 5 विधायक जिताने वाली मीम पार्टी अकेले 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिनमें से अधिकांश सीटें सीमांचल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हैं।
2020 AIMIM का विधानसभा चुनाव
अगले विधानसभा चुनाव 2020 में AIMIM ने सीमांचल-क्षेत्र में पैठ बनाकर 5 सीटें जीती (Baisi, Amour, Kochadhaman, Bahadurganj and Jokihat) — यह महागठबंधन के लिये एक ज़ोरदार झटका था। बाद में AIMIM से जीतने वाले 4 MLAs ने 2021–22 में RJD में शामिल हो गये, जिससे कि AIMIM की जमीनी मजबूती और संगठनात्मक स्थिरता पर सवाल उठने लगे।

6 सीटों की मांग
विधायको के पार्टी छोड़कर जाने के बाद 2025 विधानसभा चुनाव को ध्यान मे रखते हुऐ AIMIM ने बिहार में फिर सक्रिय और आक्रामक रुख अपनाया, पिछले चुनाव में एनडीए के विरुद्ध गठबंधन ने अपनी हार के कई कारणों से एक कारण मीम को भी बताया, वोट कटवा जैसे शब्दों से नवाजा, बीजेपी की बी-टीम बताया, इन सारे तमगो से बचने के लिए महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई, लेकिन महागठबंधन की तरफ से उचित प्रतिक्रिया न मिलने के कारण, और बातचीत से असंतुष्ट होकर, 6 सीटों की मांग करने वाली मीम ने बड़े पैमाने पर (25–100 सीटों पर) चुनाव लड़ने का दावा करके महागठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश भी की। लेकिन मुसलमानो को र्सिफ अपना वोट बैंक समझने वाले महागठबंधन ने अड़ियल रूख अपनाते हुए हिस्सा देने से इनकार कर दिया, मीम का महागठबंधन का साथ बनते बनते रह गया। जानकारो का मानना हैं कि ईसका प्रभाव चुनावीय नतिज़ो पर जारूर पड़ेगा।
ईमान साहब ने चंद्रशेखर और मौर्या जी की साथ मिलाकर सीमांचल के अलावा मिथिलांचल/मगध में भी दावेदारी करदी हैं और गैर-मुस्लिम राणा रंजीत सिंह जैसे नेताओ को उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं, जिससे यह साफ साफ़ संकेत है कि मीम बेसिक मुस्लिम-एकतरफा रणनीति से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है।
वोटर एनरोलमेंट और चुनाव आयोग
कोर्ट केस और राहुल गांधी का ‘भंडा फोड़’:
चुनावी प्रक्रिया और वोटर लिस्ट को लेकर पारदर्शिता हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चुनाव आयोग (EC) के फैसलों पर सवाल उठाए गए हैं। राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेताओं ने कथित तौर पर मतदाता सूची में अनियमितताओं या नामांकन प्रक्रिया में धांधली को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ ‘भंडा फोड़’ की बात कही है।
एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव:
जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर लगातार टिप्पणी करते रहे हैं। वह चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर नज़र रखते हैं और अक्सर मतदाता पंजीकरण (Voter Enrollment) तथा चुनावी सुधारों के संबंध में सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त करते हैं।
जन सुराज के उम्मीदवारों पर दबाव का आरोप:
जन सुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने खुले तौर पर आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी के तीन उम्मीदवारों को भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर किया गया, इसे उन्होंने “लोकतंत्र की हत्या” बताया। उन्होंने चुनाव आयोग से अपने उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है।
दोनों प्रमुख गठबंधनों का विस्तृत विश्लेषण
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA):
NDA बिहार में एकजुट दिख रहा है और उसने 243 सीटों के लिए अपनी सीट-बंटवारे की घोषणा कर दी है, जिसमें मुख्य फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर है।
| पार्टी (Party) | नेता (Leader) | अनुमानित सीट संख्या (Contested Seats) |
| भारतीय जनता पार्टी (BJP) | सम्राट चौधरी | 101 |
| जनता दल (यूनाइटेड) (JD(U)) | नीतीश कुमार | 101 |
| लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) (LJP(RV)) | चिराग पासवान | 29 |
| हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM(S)) | जीतन राम मांझी | 6 |
| राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) | उपेंद्र कुशवाहा | 6 |
| कुल (Total) | – | 243 |
नीतीश कुमार के सीएम चेहरे को लेकर अंदरूनी संशय बना हुआ है, क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने खुलकर उन्हें अगला सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह अनिश्चितता गठबंधन के भीतर तनाव पैदा कर सकती है।
महागठबंधन या INDIA ब्लॉक:
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करके अपनी नेतृत्व की अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है। मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया गया है। हालाँकि, सीट-बंटवारे को अंतिम रूप देने में देरी से कुछ असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
| पार्टी (Party) | नेता (Leader) | मुख्य भूमिका (Key Role) |
| राष्ट्रीय जनता दल (RJD) | तेजस्वी यादव | मुख्यमंत्री चेहरा |
| इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) | राजेश कुमार | प्रमुख सहयोगी |
| कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) लिबरेशन (CPI-ML) | महबूब आलम/दीपंकर भट्टाचार्य | मजबूत वाम दल |
| कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) | राम नरेश पांडे | सहयोगी वाम दल |
| कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) (CPM) | अजय कुमार | सहयोगी वाम दल |
| विकासशील इंसान पार्टी (VIP) | मुकेश सहनी | उपमुख्यमंत्री चेहरा |
| इंडियन इंक्लूसिव पार्टी | Er. IP Gupta | संभावित सहयोगी |
| निर्दलीय (Independent) | – | गठबंधन का समर्थन करने वाले |
RJD, कांग्रेस और वाम दलों के बीच सीटों के अंतिम बंटवारे को लेकर जटिलताएँ बनी हुई हैं, जिससे पहले चरण के नामांकन में देरी हुई। VIP और अन्य छोटे दलों को समायोजित करना भी एक चुनौती है।
तीसरा मोर्चा: ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस और अन्य
तीसरा मोर्चा कई सीटों पर जीत-हार का अंतर कम कर सकता है, मुख्य रूप से महागठबंधन को कई सीटों का भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। तीसरे मोर्चे की मुख्य पार्टी ओवैसी साहब की एआईएमआईएम है, जिनका कोर वोट मुसलमान हैं, जिन्हें महागठबंधन अपना वोट बैंक समझाता है। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक यह थर्ड-फ्रंट कुल 64 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहा है, जिसमें AIMIM 35 सीटें, Azad Samaj Party ~25 और Swami Prasad Maurya की पार्टी ~4 सीटें लेने की खबरें रही हैं:
ऑल इंडिया मजलिस–ए–इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM):
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल होने की पुरजोर कोशिश की थी, और कथित तौर पर 6 सीटें मांगी थीं। हालाँकि, महागठबंधन द्वारा उनकी मांग को नजरअंदाज करने के बाद, AIMIM ने तीसरा मोर्चा बनाकर सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, पूर्णिया) पर ध्यान केंद्रित करते हुए अकेले 25 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। AIMIM का यह कदम मुस्लिम बहुल सीटों पर महागठबंधन (विशेषकर RJD) के वोटों को काटकर चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकता है। बिहार मे मुसलमानों की कुल जनसंख्या 17.7% है

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP):
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) की स्थापना 2021 में पशुपति कुमार पारस ने की थी, जब लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में चिराग पासवान और पारस गुटों के बीच विभाजन हुआ। RLJP, रामविलास पासवान की मूल पार्टी LJP का ही विभाजित गुट है, जो एनडीए (BJP गठबंधन) के साथ जुड़ा रहा। पारस को केंद्रीय मंत्री बनाया गया, जिससे पार्टी को केंद्र में मान्यता और ताकत मिली। बिहार में RLJP का जनाधार मुख्यतः दलित (पासवान) समुदाय में है, खासकर जमुई, खगड़िया, हाजीपुर, समस्तीपुर क्षेत्रों में। 2024 लोकसभा चुनाव में RLJP ने एनडीए गठबंधन के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा और पासवान परिवार की विरासत को जारी रखने का दावा किया।
आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) (ASP):
आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) की स्थापना भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने 2020 में की थी, ताकि दलितों, पिछड़ों और वंचित वर्गों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सके। पार्टी का नाम बहुजन आंदोलन के जनक कांशीराम के सम्मान में रखा गया। शुरुआती दौर में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सक्रिय राजनीति की और कुछ विधानसभा चुनावों में सीमित सीटों पर लड़ी। जौहर आजाद, बिहार आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
बिहार में ASP ने हाल के वर्षों में AIMIM और अन्य दलों के साथ गठबंधन बनाकर सीमांचल और दलित-बहुल क्षेत्रों में पैठ बनाने की कोशिश की। पार्टी का मुख्य लक्ष्य सामाजिक न्याय, शिक्षा, और समान राजनीतिक अधिकारों पर आधारित “नया बहुजन आंदोलन” खड़ा करना है।
अपनी जनता पार्टी (आजपा):
स्वामी प्रसाद मौर्य ची की “अपनी जनता पार्टी” 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे के घटक के रूप में सामने आई है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय आजपा का बिहार में को व्यापक इतिहास उपलब्ध नहीं है, तीसरे मोर्चे मे यह दल 4 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है, बिहार मे मौर्य समाज की कुल जनसंख्या है
जाति आधारित सीट वितरण और समीकरण
बिहार चुनाव की मुख्य धुरी में जातिगत समीकरण ही रहे हैं।
NDA का आधार:
NDA मुख्य रूप से उच्च जातियों (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ) और अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलितों के एक बड़े हिस्से के साथ-साथ कुर्मी/कोइरी वोटों (नीतीश कुमार) के संयोजन पर निर्भर करता है।
महागठबंधन का आधार:
महागठबंधन मुख्य रूप से MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर निर्भर करता है, जो RJD का पारंपरिक आधार है। इसके अलावा, वाम दलों और CPI(ML) के माध्यम से दलितों, भूमिहीन किसानों, और अति-पिछड़ा वर्ग के एक हिस्से को भी आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है। मुकेश सहनी (VIP) के आने से मल्लाह (नाविक) समुदाय का वोट महागठबंधन की ओर जा सकता है।
तीसरे मोर्चे का प्रभाव:
AIMIM और जन सुराज जैसे दल वोटों को काटकर दोनों प्रमुख गठबंधनों के पारंपरिक वोट बैंक को कमजोर करेंगे।
जन सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर)
JSP ने बिहार में एक मजबूत वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति बनने का लक्ष्य रखा है। पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसका नेतृत्व प्रशांत किशोर कर रहे हैं, हालांकि वह खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनकी चुनौती पारंपरिक जाति-आधारित राजनीति को तोड़कर सुशासन और विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना है।
बहुजन समाज पार्टी (BSP)
नेता: शंकर महतो (बिहार)। मायावती के नेतृत्व वाली यह पार्टी बिहार में दलित वोटों के एक हिस्से पर अपना प्रभाव रखती है। हालांकि इसका प्रभाव सीमित है, लेकिन कुछ सुरक्षित (आरक्षित) सीटों पर यह NDA और महागठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है।
आम आदमी पार्टी (AAP)
नेता: राकेश यादव (बिहार)। AAP ने बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। हालाँकि, राज्य की पारंपरिक जातिगत राजनीति में इसकी पैठ अभी भी सीमित है। यह पार्टी शहरी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार विरोधी और शिक्षा/स्वास्थ्य के मुद्दे पर कुछ वोटों को आकर्षित कर सकती है।
जनशक्ति जनता दल (तेज प्रताप यादव)
नेता: तेज प्रताप यादव। RJD सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की पार्टी/मोर्चा कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकता है। उनका प्रभाव भले ही सीमित हो, लेकिन उनका हस्तक्षेप RJD के भीतर के असंतोष को उजागर कर सकता है और पारिवारिक गढ़ों में वोटों को विभाजित कर सकता है।
चुनाव की तारीखें (Election Date)
भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए निम्नलिखित तिथियाँ घोषित की हैं:
- फेज़ 1 (Phase 1): 6 नवंबर 2025 (121 सीटें)
- फेज़ 2 (Phase 2): 11 नवंबर 2025 (122 सीटें)
- मतगणना और परिणाम (Result Date): 14 नवंबर 2025
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक जटिल और बहु-कोणीय मुकाबला है। NDA ने अपनी सीट-बंटवारे की योजना को अंतिम रूप देकर बढ़त बना ली है, लेकिन नीतीश कुमार की नेतृत्वकारी भूमिका पर अनिश्चितता उसके लिए एक आंतरिक चुनौती है। वहीं, महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित करके एकता का संदेश दिया है, लेकिन सीट-बंटवारे में देरी और AIMIM जैसी पार्टियों द्वारा वोटों का बँटवारा उसकी राह को मुश्किल बना सकता है। प्रशांत किशोर का ‘जन सुराज’ एक महत्वपूर्ण विघटनकारी शक्ति (disruptive force) के रूप में उभरा है, जो अंतिम परिणाम को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित कर सकता है। यह चुनाव युवा नेतृत्व, जातिगत गणित और विकास के मुद्दों के बीच एक कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है।

पिछला बिहार चुनाव 2020 के आंकड़े
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 भारतीय राजनीति के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहे। यह चुनाव मुख्य रूप से दो प्रमुख गठबंधनों – राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (MGB) – के बीच लड़ा गया था, जिसमें दोनों ने सत्ता हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।
1. दोनों महा-गठबंधनों का विस्तृत विश्लेषण
A. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)
NDA ने निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (JDU) के नेतृत्व में चुनाव लड़ा।
- शामिल दल (मुख्य रूप से):
- जनता दल (यूनाइटेड) (JD(U))
- भारतीय जनता पार्टी (BJP)
- हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM(S))
- विकासशील इंसान पार्टी (VIP)
- सीटों का बँटवारा:
- JD(U) और BJP ने लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा।
- NDA ने कुल 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया।
- परिणाम: इस चुनाव में NDA के भीतर शक्ति संतुलन BJP के पक्ष में झुक गया। BJP ने 74 सीटें जीतीं, जबकि JD(U) केवल 43 सीटों पर सिमट गई। HAM(S) और VIP को 4-4 सीटें मिलीं। JD(U) का खराब प्रदर्शन, जिसके कारण वह गठबंधन में ‘जूनियर पार्टनर’ बन गई, एक बड़ा राजनीतिक बदलाव था।
B. महागठबंधन (MGB)
महागठबंधन ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया।
- शामिल दल:
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (CPI-ML)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPM)
- सीटों का बँटवारा:
- RJD ने सबसे ज्यादा 144 सीटों पर चुनाव लड़ा।
- INC को 70 सीटें दी गईं।
- वामपंथी दलों (CPI-ML, CPI, CPM) को कुल 29 सीटें दी गईं।
- परिणाम: महागठबंधन ने कुल 110 सीटें जीतीं।
- RJD 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
- INC को सिर्फ 19 सीटें मिलीं, और इसका खराब स्ट्राइक रेट गठबंधन के बहुमत से चूकने का एक मुख्य कारण माना गया।
- वामपंथी दलों ने शानदार प्रदर्शन किया, 16 सीटें (CPI-ML को 12) जीतकर गठबंधन को मजबूत किया।
2. जाति आधारित सीटों का बँटवारा और समीकरण
बिहार चुनाव हमेशा से जातिगत समीकरणों पर आधारित रहे हैं। दोनों गठबंधनों ने टिकट बँटवारे में जातीय गणित का खास ध्यान रखा:
| गठबंधन | वोट बैंक | टिकट बँटवारे का रुझान (2020) |
| NDA | EBC, महादलित, अगड़ी जातियाँ | BJP ने मुख्य रूप से अगड़ी जातियों और ओबीसी (खासकर गैर-यादव) पर ध्यान केंद्रित किया। JD(U) ने अपने पारंपरिक ओबीसी/ईबीसी (कुर्मी, कुशवाहा) और महादलित वोट बैंक को साधने के लिए इन समुदायों को अधिक टिकट दिए। |
| महागठबंधन | MY (मुस्लिम–यादव), वाम–समर्थक | RJD का ध्यान अपने मुख्य MY (मुस्लिम–यादव) समीकरण को मजबूत करने पर रहा। RJD ने यादव और मुस्लिम उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में टिकट दिए। कांग्रेस ने अगड़ी जातियों (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार) और कुछ ओबीसी/ईबीसी को साधने की कोशिश की। वामपंथी दलों ने दलितों, अति पिछड़ों और गरीबों के बीच अपनी पैठ का इस्तेमाल किया। |
- निष्कर्ष: NDA ने नीतीश कुमार के EBC-महादलित–महिला आधार और BJP के अगड़ी जाति–गैर–यादव ओबीसी आधार के संयोजन से जीत हासिल की। महागठबंधन ने M-Y समीकरण को मजबूत किया, लेकिन कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन और चिराग पासवान की LJP द्वारा JDU के वोट काटने के बावजूद वे बहुमत से दूर रह गए।
3. तीसरा गठबंधन: AIMIM, JAP और अन्य का विस्तृत विश्लेषण
बिहार चुनाव 2020 में एक तीसरा मोर्चा भी उभरा, जिसने परिणामों पर महत्वपूर्ण असर डाला।
A. ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF)
यह गठबंधन AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) और RLSP (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, उपेन्द्र कुशवाहा) जैसे दलों के साथ बना था।
AIMIM (असदुद्दीन ओवैसी)
AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र (जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है) में चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया।
जन अधिकार पार्टी (JAP) – पप्पू यादव:
पप्पू यादव के नेतृत्व वाली JAP ने चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, लेकिन कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं की। हालांकि, कुछ सीटों पर उनकी उपस्थिति ने भी मुख्य उम्मीदवारों के वोट समीकरण को प्रभावित किया।
जन सुराज (Jan Suraaj) – प्रशांत किशोर (विशेष संदर्भ):
2020 के चुनाव में प्रशांत किशोर (PK) सीधे तौर पर किसी पार्टी के रूप में नहीं थे, लेकिन बाद में उन्होंने ‘जन सुराज’ अभियान की शुरुआत की। प्रशांत किशोर का ‘जन सुराज’ अभियान राजनीतिक पार्टी से अलग एक पदयात्रा के रूप में शुरू हुआ है, जिसका लक्ष्य बिहार में एक वैकल्पिक राजनीतिक मंच तैयार करना है। यह अभियान सीधे तौर पर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य जमीनी स्तर पर राजनीति में बदलाव लाना है। 2020 के चुनाव में इसका कोई सीधा प्रभाव नहीं था, लेकिन भविष्य के चुनावों में इसकी भूमिका एक स्वच्छ और गैर-जातिवादी राजनीति के विकल्प के रूप में महत्वपूर्ण हो सकती है।
बिहार चुनाव 2020 का निष्कर्ष:
बिहार चुनाव 2020 में NDA ने सत्ता बरकरार रखी, लेकिन BJP गठबंधन में बड़ी शक्ति बनकर उभरी। महागठबंधन ने कड़ी टक्कर दी, लेकिन कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और AIMIM जैसे तीसरे मोर्चे द्वारा मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने के कारण वह बहुमत से चूक गया। यह चुनाव बिहार में युवा नेतृत्व (तेजस्वी यादव) की स्वीकार्यता में वृद्धि और जाति आधारित समीकरणों के साथ-साथ ‘विकास’ और ‘रोजगार’ जैसे मुद्दों की बढ़ती प्रासंगिकता को दर्शाता है।


